आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग -11
सिद्धार्थ के पिता की मौत के बाद,वो दीपा को छोड़कर अपने शहर चला जाता है, जिस कारण दीपा डिप्रेशन में आ अपने हॉस्टल के बाथरूम में रखा फिनायल पी लेती है और उसका शरीर तड़प कर मर जाता है, पर उसकी आत्मा भटकती रहती है। वो खुद को बचाने के लिए सबकी मदद मांगती है पर कोई उसे देख सुन नहीं पाया।
****
दीपा की यह सोच की उसने जब कीटनाशक पी कर आत्महत्या कर ली तो वो शुकून से मर पाएगी, अपने सिद्धार्थ को भूल पाएगी बिल्कुल ग़लत निकली।
जब मरने के बाद उसकी बॉडी जलाई जा रही थी तब वो तड़प उठी, जब उसने सिद्धार्थ को वहां नहीं देखा।
यह क्या कर बैठी वो, जिसके लिए अपना जीवन खत्म किया वहीं मेरी लाश देखने भी नहीं आया।
आत्महत्या करने से पहले ही सुसाइड नोट लिख कर उसके दोस्त को दे दिया था कि किसी तरह इसे उस तक पहुंचा देना।पर उन्होंने पता नहीं मेरा खत सिद्धार्थ तक पहुंचाया भी या नहीं।
मेरे मरने पर भी वो और उसके चारों दोस्तों में से कोई नहीं आया।
मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर बैठी थी यह बात उस समय समझ आई जब मुझे पता चला कि मुझे ना तो अब शरीर मिलेगा और ना ही परमात्मा मुझे इस पृथ्वी लोक से उबारेंगे।
मेरी आत्मा तब तक इसी तरह भटकती रहेगी जब तक की मेरी आयु इस धरती पर पूरी नहीं हो जाती।मेरी तरह कई आत्माएं ऐसे ही भटक रहीं हैं जो अपने जीवन काल में यही इसी तरह भूल कर बैठे।
आत्महत्या कर खुद को खत्म करना किसी समस्या का समाधान नहीं था यह बात अब समझ आ रही है।पर अब ना मैं अपना प्यार पा सकती हूं और ना ही अपना शरीर।
मुझे बुरी आत्माओं की संगति ने और बुरा बना दिया।पहले ही बुरी नशे की आदत की शिकार थी अब तो हर कोई मेरा दुश्मन ही नजर आता है मुझे ...
जिनके कारण मेरा यह हाल हुआ है।
कुछ दिनों से लग रहा था एक और आत्मा इस घर में भटक रही है।
उसे जब देखा और उससे परिचय हुआ तो पता चला यह तो साधना के प्रेमी सावन की आत्मा है।इसने भी वही गलती दोहराई जो मैंने की थी जब सिद्धार्थ मुझे अकेला छोड़कर चला गया था तो डिप्रेशन का शिकार हो गई थी, पता नहीं मुझ पर मरने का यह कौन सा भूत सवार हो गया था जिसने मुझे हमेशा के लिए भूत ही बना दिया।
सिद्धार्थ को आखिरी खत अपना सुसाइड नोट लिखने के बाद बाथरूम में रखी फिनायल की बोतल एक बार में ही गटक गई जिस तरह बियर और शराब पीया करती थी अपने ग़म को भुलाने के लिए।
थोड़ी ही देर में उस फिनायल ने अपना असर दिखाना शुरू किया।मेरे गले में तेज जलन होने लगी और पूरा शरीर तड़पने होने लगा। मैं प्राणहीन हो रही थी।
हॉस्टल में अपने कमरे में अकेली थी, तभी अपनी आत्महत्या को अंजाम देने के लिए बाथरूम चली गई। उस दिन सभी पिकनिक के लिए बाहर गए थे और मैं तबियत खराब होने का बहाना कर वहीं रुक गई थी।
मैं तड़पती रही कोई नहीं आया मुझे बचाने फिर वह शरीर जिस पर मुझे हमेशा गर्व था.. वह मेरा शरीर बाथरूम की जमीन पर सोया हुआ था जिसे मैंने जगाने की बहुत कोशिश की।
बाथरूम अंदर से बंद था और मैं चिल्ला रही थी पर मेरी आवाज़ किसी तक नहीं पहुंच पा रही थी।बंद दरवाजे के पास जाते ही मैंने देखा मैं बिना चिटकनी खोले बाथरूम के बाहर आ गई। दरवाजे को आर पार करते हुए।
मैं दौड़ती हुई ...गेट के पास कुर्सी पर सोए हुए चौकीदार को उठाने की कोशिश की, खूब आवाज दी पर मेरी आवाज़ उसे सुनाई ही नहीं दी।
मैं सबसे मदद माँगती रही कोई मुझे देख नहीं पा रहा था फिर वापस हार कर उसी बाथरूम में आ अपने शरीर को देख रही थी जो पहले नीला और फिर काला पड़ता था रहा था।
कभी कॉलेज की सबसे सुंदर और स्मार्ट लड़की में गिनी जाती थी वो ... इतनी बदसूरत और लाचार थी..
कई घंटों बाद बाथरूम का दरवाजा खुला और जब सफाई कर्मचारी ने मुझे इस तरह सोए देखा...
वो चीखा लाश... लाश,.. बाथरूम में लाश है।
मैं एक लाश में तब्दील हो गई थी।
हाँ मेरी आत्महत्या का प्रयास सफल रहा। इस दुनिया में हजारों लोग प्रतिदिन आत्महत्या का प्रयास करते हैं पर उनमें से कुछ ही लोग सफल हो पाते हैं।
दुनिया की नजर में वो मर जाते हैं।पर हम जैसे भटकती आत्माओं के साथ क्या होता है हम मरने के बाद भी एक जिंदा लाश की तरह इसी पृथ्वी लोक पर विचरती रहती हैं शायद ही हमारे परिवार वाले और यह समाज इस बात को जानता होगा।
पुलिस कार्यवाही चली और सभी लोग तरह तरह की बातें मेरे बारे में बोल रहे थे।
कोई कहता दीपा बुरी संगति में और लड़कों के साथ रहने के कारण बिगड़ गई थी। नशा करती थी।
किसी ने कुछ ग़लत कर दिया।
सब मेरे बारे में कुछ ना कुछ कह रहे थे और मैं किसी को अपने बारे में कुछ नहीं कह पा रही थी।
फिल्मों और टीवी सीरियल में देखा करती थी कि मरने के बाद यमराज भैंसें पर चढ़कर भैंस की सींग वाला मुकुट पहने आते हैं और अपने साथ यमलोक ले जाते हैं फिर वहां से स्वर्ग लोक या नरक लोक मनुष्य के कर्मों के आधार पर भेजा जाता है।
अब जब जान गई थी मैं मर गई हूंँ और मेरा शरीर जल गया है तो काफी समय इंतजार करती ही रही यमराज और उनके भैंसें का जिस पर बिठाकर वो मुझे इस पृथ्वी लोक से ले जाएंगे।
,,पर मेरा इंतजार खत्म ही नहीं हुआ, यमराज आए ही नहीं मुझे लेने और मैं बिना शरीर के भटकती रही । फिर अपनी जैसी भटकती हुई आत्माओं से मिली तो समझ आया कि हमारी नियति में यही है अब।ना हम जिंदा हैं और ना ही मरे।
आत्मा अजर अमर होती है उसकी हत्या मनुष्य नहीं कर सकता। जो करता है वो मेरी तरह ही जिंदगी भर भुगतता है और कब तक कितना और भुगतना पड़ेगा पता नहीं..
क्रमश:
आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई।
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।
****
कविता झा'काव्या कवि'
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®
#लेखनी
##लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता
Gunjan Kamal
26-Sep-2022 08:10 PM
शानदार भाग
Reply